आखिर कौन हैं प्रेमानंद जी महाराज?

कौन हैं प्रेमानंद जी महाराज?

वृंदावन वाले महाराज ‘प्रेमानंद जी’ के नाम से मशहूर गोविंद शरण जी महाराज इन दिनों सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं। इन्हें प्रेमानंद गुरु जी महाराज या प्रेमानंद जी महाराज के नाम से भी जाना जाता है। गोविंद शरण जी महाराज भारत के धार्मिक गुरु, हिंदू धर्म प्रचारक और कथा वाचक हैं। ये अपने आध्यात्मिक विश्वास और प्रवचन के लिए जाने जाते हैं।

प्रेमानंद जी महाराज से मिल चुके हैं विराट कोहली भी

प्रेमानंद जी महाराज राधा नाम का जाप करने , आध्यात्मिक बनने का आवाहन करते हुए प्रवचन देते हैं. पिछले कुछ वर्षो में सोशल मीडिया पर उनकी काफी पहुंच बढ़ चुकी है तथा कई बड़े बड़े सेलिब्रिटीज  उनके प्रवचन सुनने और उनके दर्शन करने वृंदावन आते हैं। पिछले वर्ष भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली अपनी पत्नी अभिनेत्री अनुष्का शर्मा और अपनी बच्ची के साथ उनके आश्रम आये थे तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।

गोविंद शरण जी महाराज वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मथुरा के वृंदावन के आश्रम में रहते हैं। उनकी दोनों किडनी कई सालों से फेल है जिसके कारण उन्हें डयलिसिस पर रहना पड़ता है। प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में सरसौल के अखरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असल नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्डे था। इनके दादा जी संन्यासी थे। इनके पिता शंभु पाण्डे भी आध्यात्मिक विचारों वाले किसान थे।

प्रेमानंद जी महाराज का बचपन से हे था आध्यात्म की ओर झुकाव

प्रेमानंद जी का झुकाव बचपन से हे आध्यात्म की ओर था। जब वे पांचवी कक्षा में पढ़ते थे तब ही उन्होंने विद्यालय में भौतिकवादी ज्ञान प्राप्त करने के महत्व पर सवाल किया था। आखिरकार जीवन के सत्य की तलाश में उन्होंने अपना घर त्याग दिया। उस वक्त वह सिर्फ 13 साल के थे। घर को छोड़ने के बाद प्रेमानंद जी महाराज वाराणसी आ गए। यहां गंगा किनारे बैठकर कर वह दिन रात भगवान की भक्ति करने लगे। दान-दक्षिणा में जो कुछ मिल जाता, उसको खाकर अपना पेट भर लेते थे और किसी आश्रम में सो जाते थे। वाराणसी पहुंचकर उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन  शुरू कर दिया था। उस वक्त लोग उन्हें आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी के नाम से जानने लगे थे।

 

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 उत्तर प्रदेश के वाराणसी में रहते हुए आगे चलकर उन्होंने संन्यास ले लिया तथा तब उन्हें स्वामी आनंदाश्रम नाम मिला। संन्यासी बनने के बाद उन्होंने  गंगा माँ को अपनी दूसरी माँ  मान लिया और वाराणसी से हरिद्वार तक गंगा घाटों पर घूमते रहते थे और भक्ति में लीन रहते थे।

अपने कई प्रवचन में प्रेमानंद जी महाराज  ने बताया है कि वाराणसी में रहने के दौरान वह कभी भी एक जगह नहीं रहे ना ही उन्होंने खाने-पीने और कपड़ों की चिंता की। वह प्रत्येक दिन ध्यान करते थे। उत्तर प्रदेश के वारणशी में रहते हुए ही  वह श्री श्यामा श्याम की कृपा से वृंदावन की महिमा की ओर आकर्षित हुए। 

एक दिन उन्हें एक संत मिले, जिन्होंने प्रेमानंद जी को रास लीला में शामिल होने को कहा। प्रेमानंद जी महाराज ने एक महीने तक रास लीला में हिस्सा लिया। हर दिन एक महीने तक वह सुबह श्री चैतन्य महाप्रभु की लीला और रात में श्री श्यामा-श्याम की रास लीला देखते थे। इन लीलाओं से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने वृंदावन जाने का सोचा।

कहा जाता है कि यही वो समय था जब प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन आने के लिए व्याकुल हो उठे थे। जिसके बाद श्री नारायण दास भक्तमाली के एक शिष्य की मदद से महाराज जी वृंदावन पहुंच गए। वृंदावन पहुंचने के बाद उनका शुरुआती वक्त वृंदावन की परिक्रमा और श्री बांके बिहारी के दर्शन में बीतता था।

बांके बिहारी जी के मंदिर में एक संत ने उन्हें श्री राधावल्लभ मंदिर जाने की भी सलाह दी। श्री राधावल्लभ मंदिर पहुंचने के बाद यहां वह घंटों राधा रानी को देखते रहते थे। इन्ही दिनों मंदिर में मौजूद संत गोस्वामी जी ने उनपर ध्यान दिया  जिसके बाद महाराज जी राधा बल्लभ संप्रदाय में जाकर शरणागत मंत्र लिया।

प्रेमानंद जी महाराज जी ने की है अपने सतगुरु गौरांगी शरण जी महाराज की 10 वर्षो तक सेवा

कुछ दिनों बाद महाराज जी अपने सतगुरु श्री गौरांगी शरण जी महाराज से मिले। उन्होंने अपने गुरु की 10 सालों तक सेवा की। फिलहाल प्रेमानंद जी महाराज का आश्रम परिक्रमा मार्ग, पुरानी कालीदहा, वृंदावन में है। महाराज जी ने अपने एक सत्संग में बताया है कि उनकी दोनों किडनी पिछले 17 साल से फेल है। इलाज ना मिल पाने के कारण उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम राधा और दूसरे का नाम कृष्ण रख लिया था। हर दिन उनका डायलिसिस होता है। उनकी उम्र फिलहाल 60 साल है। वह आज भी हर दिन सुबह 3 बजे वृंदावन की 10 से 12 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं।

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