किसान आंदोलन 2.0 : 13 फरवरी 2024 को किसानो ने एक बार फिर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं, विभिन्न किसान संघ केंद्र सरकार के सामने एक बार फिर अपनी मांगे लेकर खड़े हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान अपनी पिछ्ली मांगो के पूरा न होने को लेकर सड़को पर उतर आएं हैं और दिल्ली की ओर उनका मार्च शुरू हो चूका है। वहीं दूसरी ओर दिल्ली में किसानो को अंदर न आने देने के लिए कड़े कदम उठाये गए हैं।

एक ओर किसान समुदाय की मांगे और दूसरी ओर केंद्र सरकार अभी चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसे में किसान संघ की मांगे और सरकार की उन् पर प्रतिक्रिया को जानना जरुरी है। आखिर वो कौन से कारण है जिनकी वजह से किसान बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन कर रहें हैं?
पिछले प्रदर्शन और मांगो से हटकर इस बार किसान कृषि की वित्तीय क्षमताओं को बेहतर करने के लिए सरकार से ठोस कदमों की मांग कर रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) द्वारा किया जा रहा है। जिसमे कई नेता जोकि पिछछ्ले विरोध प्रदर्शन में शामिल थे, बाहर रखा जा रहा है।
किसान आंदोलन 2.0 की प्रमुख मांग सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी और कृषि पर एम् एस स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करना शामिल है।
किसान आंदोलन 2.0 पृष्ठभूमि
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का विशेष योगदान रहा है। कृषि भारत के सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक उत्थान का महत्वपूर्ण माध्यम रही है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 54.6 % आबादी कृषि एवं कृषि सम्बंधित कार्यों में संलग्न है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्त भी भारतीय किसान की दशा में खुछ ख़ास सुधार आया नहीं है। गत तीन दशकों मैं कई सशक्त किसान आंदोलन हुए हैं। 1980 और 90 के दशक में तो लाखों किसानो ने भाग लिए और धरने प्रदर्शन किये। किसान आंदोलन किसान समुदाय की व्यथा को लेकर आगे आते रहे हैं।
1950 से लेकर अब तक कई बार किसान समुदाय आवाज उठा चुके हैं और उठा रहें हैं। यहां यह नहीं कहा जा रहा है की किसान पक्ष की सभी मांगे जायज है या नहीं ? यहां तो चर्चा का विषय हाल ही में होने वाले किसान विरोध प्रदर्शन के मुद्दे के कारण और विभिन्न पहलुओं को समझना है।
किसान आंदोलन 2.0 कारण
किसान और खेती पर भारत में संकट मंडराता रहा है, कहें तो खेतो का प्रति हेक्टेयर औसत आकार भी कम होता जा रहा है, किसान आत्महत्या जैसे संगीन कदम उठाने को मजबूर हैं। छोटे किसानो के पास मोलभाव करने की क्षमता कम है। अभी भी लगभग 40% कृषि को ही सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। किसानो को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल है। इसीलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की शुरुवात की गयी थी।
जिसका लाभ भी केवल पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश , पूर्वी राजस्थान और आंध्रप्रदेश जैसे क्षेत्रों तक ही रहा है। अनेक क्षेत्रों में लाभ केवल बिचोलियों को मिलता है, किसान मेहनत करके भी लागत तक नहीं अर्जित कर पाता है। गरीब किसान की हालत और खराब है जो ऋण के भोझ में दबा जा रहा है। जिसके कारण किसान संघ विभिन्न मांगे करते रहे है।
किसान आंदोलन 2.0 से पहले भारतीय किसान आंदोलन 2020-21
- किसान आंदोलन 2.0 से पहले भारतीय किसान आंदोलन 9 अगस्त 2020 को शुरू हुआ और 11 दिसम्बर 2021 तक चला। जोकि भारत सरकार द्वारा पारित तीन अधिनियमों के विरोध में शुरू हुआ था। किसान संघो ने इन अधिनियमों को किसान विरोधी बताया। एवं दिल्ली चलो आंदोलन का रूप ले लिया , तब सरकार ने किसानो को दिल्ली में आने से रोकने के लिए वाटर कैनन और आंसू गैस का उपयोग किया। 26 नवम्बर को किसानो के समर्थन में राष्ट्रव्यापी हरताल की गयी।
- किसानो ने रेल रोको, दिल्ली चलो, कई राज्यों में सप्लाई बंद करने जैसे कदम उठाये, कुछ खालिस्तानी लिंक भी मिले थे।
- किसानो के लगातार लबे सी तक विरोध और धरना प्रदर्शन के चलते, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को घोषणा की कि केंद तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करेगी।
https://en.wikipedia.org/wiki/2020%E2%80%932021_Indian_farmers%27_protest
क्या थे तीन विवादास्पद कृषि कानून?
संसद ने सितंबर 2020 में तीन कृषि क़ानूनो को पारित किया, पहले जून 2020 में ये तीन क़ानून अध्यादेश (अस्थायी क़ानून) के रूप में आये थे। बाद में मानसून सत्र में कृषि सम्बंधित तीनो अध्यादेशों को ध्वनि मत से अनुमोदित क्र दिया गया था। राजयसभा ने भी 22 सितंबर तक तीनो को पास कर दिया था। भारत के राष्ट्रपति ने 28 सितम्बर 2020 को विधेयकों पर हस्तक्षर करके अपनी सहमति दी।
ये तीन क़ानून इस प्रकार हैं:
- किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम
- किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वाशन और फार्म सेवा अधिनियम का समझौता
- आवश्यक वस्तु अधिनियम
किसान आंदोलन 2.0 वर्तमान चरण – 13 फरवरी 2024
किसान आंदोलन 2024 का वर्तमान चरण सभी क्षेत्रों में चर्चा का विषय बना हुआ है, जहां किसान समुदाय अपनी मांगो के साथ दो साल बाद फिर दिल्ली की और 13 फरवरी को कूंच कर चूका है।
किसान संघ विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने और उनकी कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आश्वासन सहित उनकी मांगों को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहे हैं।
पुलिस और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच झड़प की खबरें आई हैं, जिससे आंसू गैस के गोले छोड़ने और अन्य टकराव की घटनाएं हुईं। एकीकृत किसान संगठन, संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम), चल रहे विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों के समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। स्थिति गतिशील है।
किसान संगठनों ने मजदूर यूनियन के साथ मिलकर भारत बंद (ग्रामीण) का ऐलान कर दिया, जिसके दौरान बैंक, सरकारी दफ्तर और स्कूल खुले रहेंगे। लेकिन परिवहन, कृषि गतिविधियां, मनरेगा, ग्रामीण दुकानें, निजी दफ्तर बंद रहेंगे।
किसान आंदोलन 2.0: क्या है किसानों की माँगे?
- न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाना।
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना।
- कृषि ऋण माफ़ करना।
- फल, सब्जी,कृषि एवं दूध उत्पादों पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए।
- 58 वर्ष से ऊपर लोगों को पेंशन की सुविधा दी जाये।
- कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन किया जाये।
- कपास के साथ साथ अन्य फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार किया जाये।
- भूमि अधिग्रहण नियम उसी तरह से लागू किआ जाना चाहिए, इसी सम्बन्ध में केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को दिए गए निर्देशों को रद्द किया जाये।
- लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाया जाए।
- प्रधानमंत्री सफल बीमा योजना में सुधार।
- भारत WTO से बाहर आए और मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाए।
- नकली बीज और कीटनाशक बनाने वाली कम्पनीयों पर रोक लगाएं।
क्या है स्वामीनाथन आयोग?
किसानो के विरोध प्रदर्शन से सभी लोग अवगत हैं। उनकी विभिन्न मांगों में एक है स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग क्र रहें है। ऐसे में यहां इस आयोग एवं उसकी सिफारिशों की चर्चा जरुरी है।
राष्ट्रिय किसान आयोग (The National Commission on Farmers) के अध्यक्ष प्रोफेसर एम् एस स्वामीनाथन थे। दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 तक इन्होने बतौर अध्यक्ष पांच रिपोर्ट्स पेश की। चार रिपोर्ट्स के बाद पांचवी और आखिरी रिपोर्ट में उन्होंने फोकस किसानो के तनाव और किसानो में बढ़ती आत्महत्या (farmer suicide) की प्रवृति के कारणों पर किया गया है। उन्होंने एक समग्र राष्ट्रीय निति के माध्यम से समाधान निकलने की सिफारिश की।
संक्षेप में, इस आयोग ने निम्न मुद्दों पर focus किया है:
- भूमि सुधार
- सिंचाई
- ऋण और बीमा
- खाद्य सुरक्षा
- रोजगार
- कृषि की उत्पादकता
- किसान प्रतिस्पर्धात्मकता के तहत नीतिगत सिफारिशें दी गयी हैं।
https://newspecharcha.com/bharat-mayanmar-fmr-amit-shah/
मुख्यत: स्वामीनाथन रिपोर्ट ने सिफारिश दी की MSP औसत लागत से 50% अधिक होनी चाहिए। जिसे C2 + 50 प्रतिशत फार्मूला के रूप में जाना जाता है। NCF ने संविधान की समवर्ती सूची में कृषि को शामिल करने की बात की।